अक्सर बहत सी चीज़ें अधूरी ही रह जाती हैं..
पास आके भी क्यों आखिर बिछड़ ही जाती हैं...
किस्मत है या दस्तूर ज़िन्दगी का...
लेकिन क्यों चाहा के भी कुछ चीज़ें वापस नहीं आती हैं...
ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ...
बहत कुछ अधूरा मेरा भी रह गया...
जो दिल के मेरे भी बहत करीब था...
पता नहीं कैसे पर खो ही गया...
ढूंढ़ने की कोशिश करता हु आज भी मैं...
सोचता हु के शायद रोक सकता था उसको...
बोलना चाहता था जो दिल मैं था मेरे हमेशा से...
पर बोल ना पाया कभी भी उसको...
सपने मैंने भी देखे थे बहत सारे...
लेकिन वो अधूरे ही रेह गये हैं...
उसके साथ ही रहना था मुझको
पर अब अकेले ही रेह गए हैं...
ज़िन्दगी की कश्मकश मैं जब मैं जूझ रहा था...
अकेले लड़ता रहा ये सोचकर के एक दिन हम साथ होंगे....
लेकिन वक़्त कुछ ऐसा था के हम समझ ना पाए एक दूसरे को...
और जब वक़्त मेरे पास था तब वो छोड़ जा चुकी थी मुझको...
खुस हु मैं उसके लिए क्यों की वो खुस है...
टूट ही गया दिल मेरा पर चाहता हु वो सलामत रहे...
लेकिन फिर भी कभी कभी लगता है...
शायद ज़िन्दगी कुछ और होती
अगर हम एक दूसरे के साथ होते...
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