Friday, January 18, 2019

Kabhi kabhi yuhi

दिन वो भी थे जब हर छोटी छोटी चीज़ों  के लिए वो माँ को बुलाते थे...
खाना नहीं अच्छा बना ये कहकर कितने नखरे दिखाते थे...
आकर देखिये वो अब कुछ भी खा लेते हैं...
क्यों की बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...

दादी नानी के किस्से सुनके जो बड़े हुए...
आज भी वो किस्से उनको याद आते हैं...
क्या दिन थे वो ये सोचकर दो आंसू वो भी बहा लेते हैं...
क्यों की बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...

ईद मैं सजी हुई वो मोहल्ले की गलियां...
जिनकी लाइटों की रौनक आज भी उनके दिल मैं चमक्ती हैं...
मिस्स हो गयी इस्स साल की भी ईद मेरी अपनों के साथ...
ये सोचकर वो भी मायुश हो जाते हैं...
क्यों के बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...

हर रोज़ तो बात हो ही जाती है माँ बाबूजी से...
लेकिन फिर भी क्यों कुछ बातें बोलनी रेह ही जाती हैं...
बहत मिस्स करता हूँ आपको ये क्यों कभी नहीं बोल पाते हैं...
क्यों के बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...

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