Monday, January 28, 2019

Sab kehte hain...

सब केहते हैं मैं हूँ अपनी माँ जैसा...
सच्च केहते हैं... क्यों के माँ ने मुझे गोध मैं खिलाया...
पर चलना मुझे मेरे बाबा नैं सिखाया...

सब केहते हैं मैं हूँ अपनी माँ जैसा...
सच्च केहते हैं...क्यों के माँ ने मुझे अपनी आँगन में खिलाया...
पर उसी आँगन मैं मेरे बाबा ने मुझे घोडा बन के घुमाया...

सब केहते हैं मैं हूँ अपनी माँ जैसा...
सच्च केहते हैं...क्यों के माँ ने मुझे हसना सिखाया...
पर दूसरों को हसाना मेरे बाबा ने सिखाया...

सब केहते हैं मैं हूँ अपनी माँ जैसा...
सच्च केहते हैं...क्यों के माँ ने ही मेरे बुखार मैं जग के मुझे पानी की पट्टी चढ़ाई...
पर रात भर मेरा हाथ पकड़ कर मेरे बाबा ने ही मुझे लोरी सुनाई...

सब केहते हैं मैं हूँ अपनी माँ जैसा...
सच्च केहते हैं...क्यों के मेरे गिरने पर सबसे ज़ादा मेरी माँ ने ही आंसू बहाया...
पर गिर कर खड़े होना मेरे बाबा ने ही सिखाया...

सब केहते हैं मैं हूँ अपनी माँ जैसा...
सच्च केहते हैं...क्यों के माँ ने ही मेरे कामयाबी के लिए हमेशा अल्लाह को बुलाया...
पर मेरे सपनो की कीमत को मेरे बाबा ने चुकाया... 

Friday, January 18, 2019

Kabhi kabhi yuhi

दिन वो भी थे जब हर छोटी छोटी चीज़ों  के लिए वो माँ को बुलाते थे...
खाना नहीं अच्छा बना ये कहकर कितने नखरे दिखाते थे...
आकर देखिये वो अब कुछ भी खा लेते हैं...
क्यों की बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...

दादी नानी के किस्से सुनके जो बड़े हुए...
आज भी वो किस्से उनको याद आते हैं...
क्या दिन थे वो ये सोचकर दो आंसू वो भी बहा लेते हैं...
क्यों की बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...

ईद मैं सजी हुई वो मोहल्ले की गलियां...
जिनकी लाइटों की रौनक आज भी उनके दिल मैं चमक्ती हैं...
मिस्स हो गयी इस्स साल की भी ईद मेरी अपनों के साथ...
ये सोचकर वो भी मायुश हो जाते हैं...
क्यों के बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...

हर रोज़ तो बात हो ही जाती है माँ बाबूजी से...
लेकिन फिर भी क्यों कुछ बातें बोलनी रेह ही जाती हैं...
बहत मिस्स करता हूँ आपको ये क्यों कभी नहीं बोल पाते हैं...
क्यों के बेटे भी घर छोड़ जाते हैं...

Tuesday, January 15, 2019

Zindegi kuch aur hoti


अक्सर बहत सी चीज़ें अधूरी ही रह जाती हैं.. 
पास आके भी क्यों आखिर बिछड़ ही जाती हैं... 
किस्मत है या दस्तूर ज़िन्दगी का... 
लेकिन क्यों चाहा के भी कुछ चीज़ें वापस नहीं आती हैं... 

ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ... 
बहत कुछ अधूरा मेरा भी रह गया... 
जो दिल के मेरे भी बहत करीब था... 
पता नहीं कैसे पर खो ही गया... 

ढूंढ़ने की कोशिश करता हु आज भी मैं... 
सोचता हु के शायद रोक सकता था उसको... 
बोलना चाहता था जो दिल मैं था मेरे हमेशा से... 
पर बोल ना पाया कभी भी उसको... 

सपने मैंने भी देखे थे बहत सारे... 
लेकिन वो अधूरे ही रेह गये हैं... 
उसके साथ ही रहना था मुझको
पर अब अकेले ही रेह गए हैं... 

ज़िन्दगी की कश्मकश मैं जब मैं जूझ रहा था... 
अकेले लड़ता रहा ये सोचकर के एक दिन हम साथ होंगे.... 
लेकिन वक़्त कुछ ऐसा था के हम समझ ना पाए एक दूसरे को... 
और जब वक़्त मेरे पास था तब वो छोड़ जा चुकी थी मुझको... 

खुस हु मैं उसके लिए क्यों की वो खुस है... 
टूट ही गया दिल मेरा पर चाहता हु वो सलामत रहे... 
लेकिन फिर भी कभी कभी लगता है... 
शायद ज़िन्दगी कुछ और होती
अगर हम एक दूसरे के साथ होते... 


Tuesday, January 1, 2019

Naya saal Mubarak

दिन को महीने और महीनो को साल होते देखा
मैंने भी इस साल कुछ चीज़ों को बदलते देखा
कुछ पाने के आस मैं शायद कुछ खोया मैंने
इस साल मैंने भी अपने माँ बाप को बुड्ढे होते देखा

माना के व्हाट्सप्प और फेसबुक से दूरियां काम हो जाती है
लेकिन अब भी क्यों मुझे मेरे सेहर की वो गालियां रोज़ बुलाती हैं

शायद कुछ और साल ऐसे ही बिताऊंगा
अपनों से दूर रहकर शायद कुछ और पैसे कमाऊंगा
फिर अगले साल खुदको एहि कहकर मनाऊंगा
के एक दिन में घर वापस लौट आऊंगा।